आखिर कैसे रुकेगा पलायन,जब सरकारी विद्यालयों की व्यवस्था ही हो ऐसी

रुद्रप्रयाग ब्यूरो-

“रा.इ.का. कैलाश, बांगड़, जनपद रुद्रप्रयाग के शिक्षक कमल पंवार के प्रकरण ने न केवल शिक्षकों की अस्थिरता को उजागर किया है, बल्कि उनके बच्चों के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। 10 वर्षों की सेवा के बाद भी यदि कोई अतिथि शिक्षक रा. इ. का. कैलाश, बांगड़ अपने विद्यालय से प्रभावित हो रहा है, और उसका बच्चा जो उसी विद्यालय में पढ़ता है, अपने पिता की पीड़ा का गवाह बन रहा है — तो यह न केवल एक शिक्षक की निजी वेदना है, बल्कि उत्तराखंड में कार्यरत सभी अतिथि शिक्षकों की सामूहिक पीड़ा का प्रतीक है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार की असंवेदनशील और अस्थायी नीतियाँ इन शिक्षकों को न केवल मानसिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी तोड़ रही हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि वर्तमान नीति-निर्माण में स्थायीत्व और न्याय की गंभीर कमी है।

अब तो स्थिति यह हो गई है कि हम जैसे शिक्षकों को न्याय भी पैसों में खरीदा और बेचा जा रहा है। जो लोग अपने आप को न्याय के पुजारी मानते हैं, वे भी इस व्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं। कहने को न्यायालय स्वतंत्र हैं, परंतु व्यावहारिक धरातल पर ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय भी सरकार के अधीन ही कार्य कर रहे हैं। जब न्याय प्रणाली ही पक्षपातपूर्ण और पैसे के प्रभाव में झुकी हुई हो, तो एक आम शिक्षक की उम्मीदें और अधिक टूट जाती हैं। यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चेतावनी है।

इस प्रकार से यह स्पष्ट हो चुका है कि उत्तराखंड प्रदेश के शिक्षकों और उनके नोनीहालों (बच्चों) का भविष्य आज ठोकरों पर है। जिनके कंधों पर समाज और राष्ट्र के निर्माण का भार है, आज वही शिक्षक खुद असुरक्षित हैं — और उनके बच्चे, जो कल का उत्तराखंड बनाने वाले हैं, वे असमंजस और पीड़ा में पल रहे हैं।

✍️जितेन्द्र गौड़

जिलाध्यक्ष राजकीय माध्यमिक अतिथि शिक्षक एसोशिएशन टिहरी गढ़वाल